छन्दः शार्दूलविक्रीडित
डाहा जा पर जा नआ नगिचमा इर्ष्या र आलस्य जा
जा जा चोर प्रवृत्ति जा वर नआ दूर्भाव जा दम्भ जा
लोभी धुर्त दलाल मानसिकता पाखण्ड जा क्रोध जा
मैलो गन्ध विचार जा अझ उता विद्रोह जा द्रोह जा
जा आश्वाशन पर्खिई कति बसूँ जा जा ढिला सुस्ती जा
स्वार्थी कन्जुस चाप्लुसी र झगडा बेकारका कुस्ती जा
जा जा लोभ घमण्ड जाल कपटी सैतानका खेल जा
जा चुत्थो व्यभिचार धार ननिको नैराश्यको भेल जा
जा सङ्किर्ण विचार छुद्रपन जा जा जा दुराचार जा
जा आडम्वर द्वेश क्रोध पनि जा तुच्छो अहङ्कार जा
जा दारिद्र्य विलाप रोग दुख जा, जा भोक जा शोक जा
जा आतङ्क विध्वंश ध्वंश नमिठो जा जा असन्तोस जा
जा यस्तो असमान रीत पनि जा, जा झेलको खेल जा
जा दासत्व सकार्न तत्पर हुने बैमानका मेल जा
कुण्ठा जा अबिबेक जा बिपद जा आवेगको वेग जा
जा अल्छीपन लालचीपन उता सम्मोह जा मोह जा
जा बैराग्य र बैमनश्य पनि जा, जा ढोङ जा स्वाङ जा
नातावाद विकारजन्य विजका दुर्गन्धका भ्वाङ जा
लोकाचार अशिष्ट आचरण जा जा जा अनाचार जा
बाँकी झ्याङ जरामुरा पनि भए सर्लक्क निख्रेर जा
इति
वि.सं.२०७५ असार २८ बिहीवार १०:२४ मा प्रकाशित