back

हिन्दी कविता: कोहरा

वि.सं.२०७७ मंसिर ६ शनिवार

1.3K 

shares
RBB AD
NTC AD

हर बार बांची जाती है
कोहरे की रति गाथा
जिसमे होती है
महर्षि पराशर और काली की कहानी

जिसे सुनकर
प्रेम बन के कोहरा
लिपटता है आगोश में

नर्म कोहरे में खोते
खुद से खुद को जोड़ते
धुंध में धुआं धुआं होते
अपने में जलते बुझते
रचते है प्रेमी प्रेम कहानी

लेकिन इससे इतर है
एक और कहानी

कोहरे की एक गाथा को
बांचता है मजदूर
सुलगती पेट की आग में
खुद को उसके ताप में
असल अंधकार में
कोहरे के प्रताप में

ओढ़ निकल पड़ता है
चादर कोहरे की
जमाता पांव पर थरथराता है
इससे पहले मौत सोख ले प्राण
भागता है पकड़ लेता है
कोहरे के पांव

अब मत कहना दुष्यंत
आसमानमें घना कोहरा है
ये उनकी व्यक्तिगत आलोचना है ।

वि.सं.२०७७ मंसिर ६ शनिवार ०९:४० मा प्रकाशित

NLIC AD
NABIL bank AD
रवीन्द्रको ‘पैसाको उडान’ बजारमा

रवीन्द्रको ‘पैसाको उडान’ बजारमा

काठमाडौंँ । साहित्यकार रवीन्द्र समीरको उपन्यास ‘पैसाको उडान’ प्रकाशनमा आएको...

कविता : निखार काव्य ए कवि

कविता : निखार काव्य ए कवि

स्वर्ण शिखा, दाङ नवीन यामको अहो सुरम्य बिम्ब देखियो, नवीन...

कविता : शब्द दुरुपयोग

कविता : शब्द दुरुपयोग

निम्बतरु,अर्घाखाँची कालेलाई काले भन्न मिल्दैन सेतेलाई सेते भन्न मिल्दैन नेप्टे...

कविता : आत्मबोध

कविता : आत्मबोध

शान्ता न्यौपाने, बेलबारी, मोेरङ सधैं तिमी मर्छुमर्छु भन्छौ तर तिमीलाई...

गजल

गजल

सुधिर थापा,काठमाडौं तिमी मेरो राजा भएँ रानी तिम्रो मीठो माया...

मुक्तक

मुक्तक

अरुण खड्का,काठमाडौं १ फुलुन् टन्न नयाँ नयाँ फूल नयाँ वर्षमा...